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Saturday, April 16, 2011

17.मुझको


जब कोई भी ना रहा कन्धा मेरे रोने को 
घर कि दीवारों ने सीने से लगाया मुझको 

यूँ तो उम्मीद-ए-वफ़ा तुम से नहीं है कोई 
फिर चिरागों कि तरह किस ने जलाया मुझको 

बेवफा ज़िन्दगी ने जब छोर दिया  है तन्हा 
मोत ने प्यार से पहलू में बिठाया मुझको 

वो दिया  हूँ जो मोहबत ने जलाया था कभी 
गम कि आंधी ने सार-ऐ-शाम बुझाया मुझ को 

कैसे भूलूंगाl वो वस्ल के लम्हे 
याद आता रहा जुल्फों का ही साया मुझ को

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