फटे पुराने कपड़ों में
ले ली उसने १ अंगराई
मुस्कान थी उसकी बिलकुल झूठी
आँखों में सागर से गहरी खाई
झूठे पत्तलों को छांटना
दो दानों को निकालती वो
डर के खाती १ दाना
बाकी को संभालता वो
कुछ कुत्ते उसके पीछे पड़े
उनसे भी उसे जूझना था
भूखे बच्चों कि खातिर
और दाने भी चुनना था
चाहत थी उसकी मुट्ठी भर खाने कि
पर यहाँ कुछ दाने भी मुस्किल हुई
समेत कर चल दी बेचारी
जो चंद दाने उसे हासिल हुई
मुस्कुराना गुनगुनाना
सब झूठी उसकी कहानी थी
हालत उसकी भली हो ऐसी
पर दुनिया से अनजानी थी
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